Monday, November 17, 2008

सत्यजीत रे का सिनेमा

सत्यजीत रे और सिनेमा
**********************

पाथेर पांचाली को अपने प्रथम प्रदर्शन के लगभग चार दशक बाद एक बार फिर से देखना आज भी (लिंडसे एंडरसन के शब्दोंमें) घुटनों धूल में चल कर भारतीय यथार्थ और मानवीय दशा के हृदय में उतरना है।
भारतीय गांव की पीस डालने वाली गरीबी में पाथेर पांचाली लुइस माले के अज्ञात झुंड को नहीं देखती बल्कि एक मनुष्य कोदेखती है जो अपने प्रेम, प्रकृति और बचपन के आनंद में उतना ही अकेला है जितना मृत्यु के बिछोहकारी दुख में और अस्तित्वबनाये रखने के अपने अंतहीन दैनिक संघर्ष में। यह ग्रामीण गरीबी का मानवीय चेहरा है, इसके सांख्यकीय कष्टों का नहीं। यहमानवीय चेहरा ही हमें अपु या दुर्गा, सर्वजया या हरिहर को अपने बीच के ही एक मनुष्य के रूप में दिखाता है। हम जान पाते हैंकि हरिहर एक कवि है, एक बुद्धिजीवीः सर्वजया क्षमता और गरिमायुक्त नारी हैः अपु सौम्य संवेदनशीलता वाला लड़का है औरदुर्गा प्रकृति की सुंदर और निर्दोष बालिका है, वे हमारे ही एक अंग बन जाते हैं और हमारे भीतर कुछ बदल देते हैं और मानवताके प्रति हमारे दृष्टिकोण को भी।

सत्यजीत राय की काम की एक विशुद्ध ‘‘सौंदर्य शास्त्रीय’’ समीक्षा मुश्किल से ही संपूर्ण हो सकती है। राय शास्त्रीयतावादी थे, वेकला की उस पारंपरिक भारतीय दृष्टि के वारिस थे जिसमें सौंदर्य सत्य और शिव से अविभाज्य है। पश्चिमी संस्कृति की एकबहुत व्यापक श्रृंखला की सूक्ष्म समझजिसे 1949 में ज्यां रेनेवां ने ‘‘असाधारण’’ पाया थाके बावजूद यह भारतीयता है जोउन्हें भारत के संदर्भ में और उस माध्यम के संदर्भ में जो पश्चिम से आयातित था और जिसमें उन्होंने काम किया, महत्त्वपूर्णबनाती है। उनके काम के सैंतीस वर्ष भारत में एक शताब्दी से भी अधिक की अवधि में आये सामाजिक परिवर्तनों का इतिहासहै। शतरंज के खिलाड़ी में मुगल गौरव के अंततः अवसान से लेकर जलसाघर में सामंती जमींदार के पतन, अपु त्रयी में पारंपरिकसे आधुनिक होते हुए भारत में कमजोर होते ब्राह्मणवादी आंदोलन, देवी और चारुलता में भारतीय कुलीन वर्ग की बौद्धिकविचारों के प्रति जागरुकता, महानगर में महिला मुक्ति की शुरुआत तक, फिर प्रतिद्वंद्वी में स्वतंत्रता प्राप्ति के दशकों बादबेरोजगार युवक का आक्रोश, जन अरण्य और शाखा प्रशाखा में भ्रष्ट समाज में सामाजिक चेतना की अपरिहार्य मृत्यु और अंततःअजांत्रिक में मानवीय आवश्यकताओं के सरलीकरण की एक नयी कार्य सूची में आशा की एक चमक और मूलभूत मूल्यों के प्रतिआग्रह तक-राय का काम पहले आधुनिक भारत में मध्यवर्ग के सामाजिक विकास की आवश्यक रूपरेखा को तलाशता है औरफिर इससे आगे की शुरुआत करता है।

No comments: